मन की बात : एपिसोड - 102
यह मन की बात कार्यक्रम का 102वां एपिसोड है। इस एपिसोड की शुरुआत प्रधानमंत्री मोदी जी देशवासियों को नमस्कार करते हुए उनका अपने “मन की बात” कार्यक्रम में स्वागत करते हैं।
ऐसे तो मन की बात का प्रसारण हर महीने की अंतिम रविवर को होता है लेकिन इस बार इसकी शुरुआत एक हफ्ता पहले हो रहा था।
मोदी जी बताते हैं कि ऐसा क्यों है। वो बताते हैं कि अगले हफ्ते वो अमेरिका दौरे पर जाने वाले हैं जहां उनका व्यस्त कार्यक्रम रहेगा। इसलिए उन्होंने सोचा क्यों ना अमेरिका जाने से पहले अपने देशवाशियों से मन की बात कर उनका आशीर्वाद ले लिया जाए।
मोदी जी आगे चक्रवात बिपरजॉय के संदर्भ में आम जन मानस की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि लोग मेरे बारे में कहते हैं कि "मोदी जी ने ये किया, वो किया, ये अच्छा किया, वो ज्यादा अच्छा किया आदि" लेकिन जब मैं खुद आम जन मानस के प्रयास, मेहनत और इच्छाशक्ति को देखता हूं तो अभिभूत हो जाता हूं।
भारतीय लोगों का सामूहिक प्रयास और शक्ति हर बड़े से बड़े लक्ष्य और मुश्किल से मुश्किल चुनौती का समाधान निकाल देता है।
मोदी जी 2-3 दिन पहले भारत के पश्चिमी छोर पे आये चक्रवात बिपरजॉय का उदाहरण देते हुए कहते हैं कच्छ में तेज हवाएं और बारिश ने बहुत कुछ तहस नहस कर दिया, लेकिन कच्छ के लोगों ने जिस हिम्मत और तैयारी के साथ खतरनाक बिपरजॉय का सामना किया किया वो भी उतना ही काबिले तारिफ और भूतपूर्व है जैसा भाव वो मेरे बारे में रखते हैं ।
आगे मोदी जी कच्छी नया साल, जो आषाढ़ माह के दूसरे दिन आषाढ़ी बीज के रूप में मनाया जाता है, उसका जिक्र करते हुए कहते हैं कि ये भी संयोग है कच्छ के लोग 2 दिन बाद आषाढ़ी बीज मनाने जा रहे हैं जो कच्छ में बारिश की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। लेकिन वो कच्छ के लोगों के साथ अपने अनुभव को महसुस करते हुए उनके हौसलों और जिजीविषा की तारीफ करते हुए विश्वास जताते हैं कि कच्छ के लोग जल्दी ही इस चक्रवात बिपरजॉय से ठीक वैसे ही उबर जाएंगे जैसे 2 दशक पहले भुज में आए विनाशकारी भूकम्प से उबर गए थे। उस समय लोग कच्छ के बारे में कहते थे कि वो अब कभी दुबारा खड़ा नहीं हो पाएगा, लेकिन वही कच्छ आज देश के तेज गति से विकसित हो रहे हैं जिलों में से एक है।
प्रधानमंत्री मोदी जी आपदा प्रबंधन में भारत और भारत के लोगों की भूमिका के बारे में चर्चा करते हैं, उनके अनुसार प्राकृतिक आपदा किसी के वश में नहीं होता, हम केवल उसका प्रबंधन ही कर सकते हैं और इस दिशा में पिछले कुछ वर्षों में भारत ने जो शक्ति विकसित की है वो दुनिया के लिए एक उदाहरण बन रही है।
"प्रकृति का संरक्षण" एक बड़ा तरीका है जिसके जरिए हम प्राकृतिक आपदाओं से लड़ सकते हैं। जब बात वर्षा ऋतु (मानसून) की हो तो हमारी निजी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। इसलिए भारत कैच द रेन (Catch The Rain) जैसे अभियानों के माध्यम से सामूहिक प्रयास कर रहा है।
मोदी जी जल संरक्षण के बारे में बात करते हुए कहते हैं कि पिछले महीने ही उन्होंने जल संरक्षण से संलग्न स्टार्टअप्स की चर्चा की थी। इस बार भी उन्हें चिट्ठियों के जरिए कई ऐसे लोगों के बारे में जानकारी दी गई जो जी जान से जल के एक एक बूंद बचाने में लगे हुए हैं। मोदी जी ऐसे ही एक साथी तुलसीराम यादव का जिक्र करते हैं जो यूपी के बांदा जिले से आते हैं और वो लुकतरा ग्राम पंचायत के प्रधान हैं। यह तो सबको पता ही है की बांदा और बुंदेलखंड जैसे क्षेत्र में पानी की समस्या रही है। इन्हीं समस्या से निपटने के लिए गांव के लोगों को साथ लेकर इलाके में 40 से ज्यादा तालाब बना दिए। तुलसीराम जी ने "खेत का पानी खेत में" और "गांव का पानी गांव में" जैसे मंत्र को लेकर आगे बढ़े और नतीजा ये है की उनके गांव के भू जलस्तर में लगातार वृद्धि हो रही है।
ऐसा ही एक उदाहरण यूपी में हापुड जिले के लोगों ने एक विलुप्त “नीम” नदी को पुनर्जीवित करके दिखाया है। हापुड़ में बहुत पहले एक नीम नदी हुआ करती थी जो धीरे धीरे विलुप्त हो गई थी। लेकिन एक अच्छी बात ये थी कि समय समय पर इस नदी को स्थानीय स्मृतियों और जन कथाओं में याद किया जाता रहा। आखिरकार लोगों ने मिलकर अपनी प्राकृतिक धरोहर को फिर से जिंदा करने की ठानी और धीरे धीरे उनके सामूहिक प्रयास से नीम नदी अपना पूर्व रूप लेने लगी है। अब तो लोग उसके उद्गम स्थल को भी अमृत सरोवर के रूप में विकसित कर रहे हैं।
जल श्रोतों (नदी, नहर, तालाब) से लोगों की भावनाएं जुड़ी होती है। ऐसा ही एक वाकया महाराष्ट्र से आया है। 50 साल से यहां के लोग नीलवंडे डैम की कैनाल का काम पूरा होने का इंतेजार कर रहे थे, जो अब पूरा हुआ है। इस कैनाल की टेस्टिंग के लिए कुछ दिन पहले ही जब पानी डैम से छोड़ा गया तो गांव के लोग खुशी के मारे होली दिवाली त्योहार की तरह झूमने लगे। ऐसे पल भावूक करने वाले होते हैं।
जल प्रबंधन की बात करते हुए मोदी जी क्षत्रपति शिवाजी महाराज के प्रबंधन कौशल का जिक्र करते हैं। समंदर के बीच उनके द्वारा बनाए गए जलदुर्ग की प्रशंसा करते हुए कहते है की इतनी शताब्दी बीत जाने के बावजूद समुंद्र के बीच आज भी वैसे के वैसा ही खड़ा है। आगे प्रधानमंत्री जी बताते है की 2014 में उन्हें शिवाजी महाराज की पवित्र भूमि रायगढ़ जाकर उसे नमन करने का सौभाग्य मिला था। शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के 350 वर्ष पूर्ण होने पर, इसी महीने की शुरुआत में इस अवसर को पर्व के रूप में मनाया जा रहा है और इससे जुड़े भव्य कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जा रहा है। इस अवसर पे लोग इनके प्रबंधन कौशल को सीखें और जानें। इससे खुद में अपने विरासत पर गर्व भी होगा, और भविष्य में ऐसा ही कुछ करने की प्रेरणा भी मिलेगी।
मोदी जी रामायण के उस छोटी गिलहरी, जिसने राम सेतु बनाने में मदद को आगे आई थी, का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि लक्ष्य कोई भी हो अगर साफ नियत और ईमानदार प्रयास से किया जाए तो वो मुश्किल नहीं रहता। उनका इशारा 2025 तक टी.बी(क्षय रोग) मुक्त भारत के लक्ष्य की ओर था। वो पहले और आज के टी.बी मरीजों के परिवार के सोंच और उनके व्यवहार में अंतर को भी बताते हैं। वो ये भी बताते हैं कि कैसे आज बड़ी संख्या में निक्षय मित्र टी.बी को जड़ से समाप्त करने में मरीजों को गोद ले रहे हैं। वो खुशी जताते है की गांव देहातों, पंचायतों में सरपंच और ग्राम प्रधानों ने भी अपने स्तर पर टी.बी उन्मूलन का बीड़ा उठाया है।
कम उम्र में बड़ी सोंच रखने वाले कुछ बच्चों और युवा साथियों का जिक्र करते हुए टी.बी मुक्त भारत के अभियान में अपना योगदान देने के लिए उनकी हृदय से प्रशंसा भी करते हैं। उदाहरण के लिए हिमाचल प्रदेश के ऊना की बेटी नलिनी (7 वर्ष), एम.पी के कटनी जिले की मीनाक्षी (13 वर्ष) और पश्चिम बंगाल के डायमंड हार्बर के बश्वर मुखर्जी (11 वर्ष) जिन्होंने अपने जेब खर्च (पॉकेट मनी) या गुल्लक के पैसों को भी टी.बी मुक्त अभियान में लगा दिए।
माननीय मोदी जी जापान की एक तकनीक "मियावाकी" का जिक्र करते हैं जिसके जरिए बंजर भूमि को भी दुबारा हरा भरा किया जा सकता है। इस तकनिक की खास बात ये है की इसके जंगल तेजी से फैलते हैं। भारत के साथ साथ पूरी दुनियां में इस तकनीक के प्रसार पर मोदी जी प्रकाश डालते हैं।
केरल के एक शिक्षक श्रीमान राफी रामनाथ का उदाहरण देते हुए बताते है कि अपने विद्यार्थियों को पर्यावरण की गहरी समझ देने के लिए इस मियावाकी तकनीक से एक छोटा जंगल ही बना दिया जिसका उसने एक सुंदर नाम दिया विद्यावनम। उन्होंने यहां एक छोटी सी जगह में 115 प्रकार के 450 से अधिक पेड़ लगाए जिसे देखने स्कूल के बच्चे समेत आम नागरिक भी बड़ी संख्या में आते हैं।
यह तकनीक इतना प्रभावी है की शहरों के साथ साथ कठिन से कठिन प्राकृतिक परिवेश में भी सफलतापूर्वक काम करता है। भारत के कई शहरों में इस तकनिक का इस्तेमाल हो रहा है। उदाहरण के लिए गुजरात के केवड़िया, एकतानगर, कच्छ, अंबाजी, पवानगढ़, लखनऊ के अलीगंज, महाराष्ट्र के मुंबई और इसके आस पास के क्षेत्रों में इस तकनीक से उद्यान और वन विकसित किए जा रहे हैं।
भारत के अलावा सिंगापुर, पेरिस, ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया जैसे कितने ही देशों में इसका उपयोग बड़े स्तर पर किया जा रहा है।
मोदी जी देशवासियों को भी इस मियावाकी तकनीक के बारे में जानने का आग्रह करते हैं खासकर शहरी क्षेत्र में रह रहे लोगों से ताकि अपने धरती को स्वच्छ एवं हरा भरा बनाने में अपनी अहम भुमिका अदा कर सके।
जम्मू कश्मीर का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री जी कहते हैं, आजकल देश दुनियां में कश्मीर हर जगह छाया हुआ है, कभी जी20 के आयोजनों के कारण तो कभी पर्यटन में बढ़ोतरी के कारण सुर्खियों में है। देश के बाहर "नादरू" को पसंद किया जा रहा इसकी जानकारी तो उन्होंने कुछ समय पहले इसी कार्यक्रम में दिया था। अभी जम्मू कश्मीर की चर्चा बारामूला जिले के लोगों द्वारा जो कमाल किया गया गया है उसके लिए हो रही है। बारामूला में दूध की भारी कमी रहती थी जिसकी पूर्ति कर पाना एक चुनौती से कम नहीं था। यहां के लोगों द्वारा इस चुनौती को अवसर में बदलने के लिए बड़ी संख्या में डेयरी का काम शुरू किया गया, जिसमे अधिकांश महिलाएं आगे आईं। पिछले कुछ सालों (ढाई-तीन सालों) में यहाँ पांच सौ (500) से ज्यादा डेयरी यूनिट लगी है। ये सामूहिक प्रयास का ही नतीजा है की जिस जिले में दूध की किल्लत थी वहां आज हर दिन 5.5 लाख लीटर दूध का उत्पादन हो रहा है। अब तो पूरा बारामूला एक नए श्वेत क्रांति का पहचान बन रहा है। इसका श्रेय इशरत नबी (मीर सिस्टर्स डेयरी फार्म), वसीम अनायत, आबिद हुसैन जैसे साथियों को जरूर मिलना चाहिए। बारामुला के लोगो ने साबित कर दिया की सामूहिक इच्छाशक्ति से हरएक लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।
खेल जगत में भारत के उम्दा प्रदर्शन पर बात करते हुए मोदी जी कहते हैं हॉकी विमेंस जूनियर एशिया कप में पहली बार लड़कियों ने जीत दर्ज कर तिरंगे की शान बढ़ाई है। मेंस हॉकी टीम ने भी इसी महीने जूनियर एशिया कप जीता है और इस तरह जुनियर एशिया कप के इतिहास में सबसे ज्यादा बार जीत दर्ज करने वाली टीम बन गई है। शूटिंग में भी जूनियर टीम ने जूनियर शूटिंग वर्ल्ड कप में पहला स्थान हासिल कर देश का नाम रौशन किया है। सबसे कमाल की बात ये रही की कुल गोल्ड मेडल्स का 20% अकेले भारत ने अपने खाते में डालें हैं। इसके अलावा भारत एशियन अंडर 20 एथेलेटिक्स चैंपियनशिप में पदक तालिका में 45 देशों में शीर्ष 3 में रहा है।
पहले जब अंतराष्ट्रीय आयोजन होते थे तो हम तालिका में भारत के नाम को ढूंढते थे पर कहीं दिखाई नहीं देता था। लेकिन आज अगर बीते कुछ हफ्तों की सफलता को देखा जाय तो इसकी सूची लंबी दिखाई देती है। कई खेल की स्पर्धाओं में तो आज हम पहली जीत दर्ज कर रहे हैं, उदाहरण के लिए पेरिस डायमंड लीग में श्रीशंकर मुरली ने लांग जंप में पहली बार भारत को ब्रॉन्ज मेडल दिलाया। इसी प्रकार किर्गिस्तान में अंडर सिवेंटीन्थ वूमेन रेसलिंग टीम ने पहली जीत हासिल की है। यह हमारे युवाओं की जोश और परिश्रम का नतीजा है। और फिर मोदी जी सभी एथलीट्स के माता-पिता और उनके कोच को उनके प्रयासों के लिए बधाई देते हैं।